रविवार, जुलाई 29, 2012

युवा देश की बूढी समस्या


आज देश की एक बड़ी समस्या है कि सरकारें (केन्द्र और राज्यों की) देशवासियों की अपेक्षा पर खरी नहीं उतर रहीं.  इसकी एक बड़ी वजह है – “जनरेशन गेप “ यानि की सत्तारूढ़ लोगों और जनता के बीच पीढ़ियों का अंतर होना.  जिस देश की आधी से अधिक (54 %)  आबादी 25 साल के कम उम्र की हो उसकी जरूरतें 75 साल के बूढ़े  नहीं पूरी कर सकते.
Can they lead Young India?

देश का प्रधानमंत्री 79 साल का है.  इसे चुनौती दे रहा है  75 वर्षीय अन्ना हजारे. हाल ही में चुने गए राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की उम्र  उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी और अन्ना हजारे से एक साल ज्यादा है.   भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी  84 साल की उम्र में भी दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को कमान सौपना नहीं चाहते.

जब उम्र में तीन गुने का फर्क हो तो आशा और अपेक्षा कैसे पूरी होँगी ?  यही वजह है कि 25 साल से कम  के ज्यादातर मतदाता चुनाव में वोट ही नहीँ डालने जाते हैं. जो जनता के विकास के लिए सोच सके ऐसे नेता बहुत कम दिखाई देते हैं .

उनमें दो नाम मेरे जेहन में आते हैं , एक , नरेन्द्र मोदी 52 वर्ष की उम्र में मुख्यमंत्री गुजरात के मुख्यमंत्री बने थे, 74 वर्षीय  केशुभाई के स्थान पर.  दूसरे, चंद्राबाबू नायडू. 45 साल की उम्र में चंद्राबाबू नायडू ने हैदराबाद को आई टी जगत में बंगलुरु के आगे पहुंचा दिया. 2020 के सपने जनता को दिखाना और उन्हें हासिल करना नायडू की उम्र का नेता ही कर सकता था.

नायडू और मोदी रिमोट से कंट्रोल होने वाले नेता ना होने से विकास पथ पर चल सके. हाल ही में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव देश के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने लेकिन उनका रिमोट “नेताजी “ के उपनाम से विख्यात मुलायमसिंह और उनके भाई रामगोपाल यादव के पास है. परिणाम सबसे कुख्यात बदमाश राज्य का जेलमंत्री है. विकास के वादे हैं पर क्या होगा यह कुछ समय बाद ही पता चलेगा. फ़िलहाल तो कश्मीर के उमर अब्दुल्ला की राह पर हैं. वहाँ फारूख परदे के पीछे हैं, यहाँ पापा – चाचा.

युवा देश के सपने बूढ़े कन्धों पर नहीं ढोए जा सकते. लेकिन इसके लिए युवाओं को खुद आगे आकर कमान संभालनी होगी. वर्ना हम केवल हम केवल आबादी बढ़ाएंगे देश नहीं.

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