शनिवार, जनवरी 25, 2014

जब मन हों परेशान झील के पानी को याद करें

आज के ज़माने की तेज रफ्तार और बदलते सामाजिक मूल्यों से जूझते मनुष्य का मन विचलित और उदास अधिक रहता है| हम अपने चारों ओर समस्याओं का पहाड पाते हैं | अधिकतर किस्सों में हम मानते हैं कि इन उलझनों का कोई हल नहीं है | पर क्या यह हकीकत है ? भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ा एक किस्सा पढते हैं|

एक बार भगवान बुद्ध अपने शिष्यों के संग जंगल से गुजर रहे थे। दोपहर को एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने रुके।
Lord Buddha
वहाँ उन्होंने एक शिष्य से कहा कि
 'प्यास लग रही है, कहीं पानी मिले, तो लेकर आओ।'

शिष्य एक पहाड़ी झरने से लगी झील से पानी लेने गया। उसी समय कुछ पशु दौड़कर झील से निकले थे| इस वजह से झील का पानी गंदा हो गया था। उसमें कीचड़ ही कीचड़ और सड़े पत्ते बाहर उभरकर आ गए थे। शिष्य पानी लिए बिना ही लौट आया। उसने तथागत से कहा कि झील का पानी साफ़ नहीं है, मैं दूर वाली नदी से पानी ले आता हूं।

बुद्ध ने पूरी बात सुनी, फिर  उसे उसी झील का पानी ही लाने को कहा। शिष्य इस बार भी खाली हाथ लौट आया।  उसने तथागत को बताया कि पानी अब भी गंदा है|
भगवान बुद्ध ने शिष्य को एक बार फिर वापस भेजा। तीसरी बार शिष्य पहुंचा, तो झील बिल्कुल निर्मल और शांत थी। कीचड़ बैठ गया था और जल स्वच्छ हो गया था। जब वह निर्मल जल लेकर वापस लौटा, तो महात्मा बुद्ध ने उससे पूछा कि उसने अपने  तीन प्रयासों से क्या सीखा?  
शिष्य ने कहा कि पशुओं के भागने के कारण जल अस्थिर हो गया था और नीचे की कीचड़ ऊपर आ जाने से जल मलिन हो गया था | समय जाते जल स्थिर हुआ ओर कीचड़ भी नीचे बैठ गई, जल निर्मल हो गया |
मुस्कुराते हुए भगवान बुद्ध ने उसे समझाया कि यही स्थिति हमारे मन की झील की भी है। दौड़ते भागते मन विक्षुब्ध हो जाता है | दौड़-भाग से मथा मन अस्थिर हो जाता है| व्यक्ति तनाव में भूलभरे निर्णय करने लगता है।पर यदि कोई शांति और धीरज से उसे बैठा देखता रहे, तो सारी कीचड़ अपने आप नीचे बैठ जाती है और सहज निर्मलता का आगमन हो जाता है। इससे शिष्य को जीवन का महत्वपूर्ण सबक मिल गया। यह सीख अगर हम अपना लें तो जीवन तनाव रहित हो जायेगा |

हमेशा के लिए गांठ बाँध लें संयम के साथ विचार करने पर किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है

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